Premanand Maharaj Realationship Tips: साथियों प्रेमानंद महाराज ने सच्चे प्रेम की निशानी के लिए दशरथ मांझी की मिसाल दी क्योंकि प्यार बहुत ही सुंदर एहसास होता है और इस एहसास को दशरथ मांझी ने बिल्कुल अच्छे से समझा था| मुझे और आपको इसे समझने के लिए, दिल के साथ थोड़ी समझदारी और जागरूकता की जरूरत होगी| अक्सर लोग सामने वाले व्यक्ति को देखकर यह सोचने लगते हैं कि इस व्यक्ति से ज्यादा मुझे और कोई प्यार नहीं कर सकता है, और इसी सोच के साथ कई सारे गलत फैसला ले लेते हैं| फिर बाद में पूरी तरह से भावनात्मक रूप से टूट जाते है| तो अगर आप यह पता लगाना चाहते हैं की प्रेमानंद महाराज ने सच्चे प्यार की निशानी के लिए दशरथ मांझी की मिसाल क्यों दी तो इस आर्टिकल को पूरा जरूर पढ़ें| इस आर्टिकल को पढ़ने के बाद आपको दशरथ मांझी की जीवन कथा और उनके प्यार के बारे में पूरी जानकारी हो जाएगी|
दशरथ मांझी की पूरी कहानी
दशरथ मांझी की प्रारंभिक जीवन और संघर्ष
दशरथ मांझी, जिन्हें माउंटेन मैन के नाम से भी जाना जाता है| उनका जन्म बिहार के गया जिले गेहलौर गांव में 14 फरवरी 1934 में हुआ था| वह एक गरीब दलित परिवार से थे, और उनका पूरा बचपन संघर्षों से भरा बीता| दशरथ मांझी अपनी आजीविका के लिए मजदूरी पर निर्भर थे| इसके अलावा बचपन में दशरथ को अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को संभालने के लिए मजदूरी करनी पड़ती थी| जिससे वह तंग आकर छोटी उम्र में ही घर से भाग गए और धनबाद के कोयला खदानों में मजदूरी करने लगे|
कुछ सालों बाद, दशरथ मांझी अपने गांव गेहलौर वापस आ गए और खेती बाड़ी में मजदूरी करने लग गए| कुछ वर्षों बाद उनका विवाह फुलगुनी देवी से हुआ, दशरथ मांझी और फूलगनी देवी एक दूसरे को खूब प्रेम करते थे और उनका जीवन गरीबी में होने के बावजूद बहुत खुशहाल था| इसके अलावा गेहलौर गाँव और पास के शहर के बिच एक विसाल पहाड़ था, जिसके कारण गांव के लोगो को शहर आने-जाने में बहुत कठिनाई होती थी, और सही रास्ते से शहर जाने के लिए काफी लंबा रास्ता तय करना पड़ता था|
वह मोड़ जिससे दशरथ मांझी का पूरा जीवन बदल गया
दरअसल बात कुछ ऐसी है, जब दशरथ मांझी की पत्नी फाल्गुनी देवी पहाड़ के उबड़-खाबड़ रास्तो से होकर घर के लिए पानी लेकर जा रही थी|उस वक़्त उनका एक पैर पत्थर पर फिसल गया और वह पहाड़ से कुछ दूरी तक नीचे गिर गई जिससे वह बुरी तरह से घायल हो गई| उस समय गांव के लोगों को किसी भी तरह की चिकित्सा सहायक के लिए पास के शहर वजीरगंज जाना पड़ता था|
शहर के रास्ते में एक विशाल पहाड़ था, जिसके वजह से शहर जाने में काफी समय लगता था| दशरथ मांझी अपनी पत्नी को लेकर अस्पताल लेकर जा रहे थे, लेकिन पहाड़ को पार करने में इतना समय लग गया कि वे अपनी पत्नी को सही समय पर अस्पताल नहीं पहुंचा सके, जिससे उनके पत्नी की मृत्यु हो गई| यह घटना दशरथ मांझी के जीवन का सबसे बड़ा और दर्दनाक हादसा हुआ|
पत्नी को खोने का दर्द इतना गहरा था कि उन्होंने अपने जीवन का उद्देश्य ही बदल दिया| उस पहाड़ की वजह से दशरथ मांझी अपने पत्नी को सही समय पर इलाज के लिए शहर नहीं ले जा सकें, जिनकी वजह से उनकी पत्नी की मृत्यु हो गयी| ऐसा किसी और परिवार के साथ ना हो इसीलिए उन्होंने प्रण लिया के वह अकेले ही इस पहाड़ को काटकर रास्ता बनाएंगे|
दशरथ मांझी की उपलब्धियां
साथियो जैसा कि आपने अब तक जाना की दशरथ मांझी कम उम्र में ही घर से भाग गए थे और धनबाद के कोयला खदानों में मजदूरी करके अपना गुजारा कर रहे थे| उनकी पत्नी के गुजर जाने के बाद उन्होंने फैसला किया कि वह अकेले ही उस पहाड़ को काटकर रास्ता बनाएंगे| बिना किसी तरह की देरी किए अपनी पत्नी के गुजर जाने के कुछ ही हफ्तों बाद से पहाड़ काटकर रास्ता बनाने का काम शुरू कर दिया था|
उन्होंने बताया कि जब वह पहाड़ काटना शुरू किए थे, तब उस समय लोग उन्हें पागल कहते थे और उनकी बातों को मजाक में लेकर उनकी खिल्ली उड़ने थे| दशरथ मांझी को पहाड़ काटकर रास्ता बनाने में पूरे 22 साल लग गए| इस सड़क के बनने अतरी और वजीरगंज ब्लॉक की दूरी 55 किलोमीटरस से हटकर 15 किलोमीटर रह गई|जिससे गेहलौर गाँव के लोगो को शहर आने-जाने में बहुत मदद मिली|
दशरथ मांझी कि प्रयास का बहुत मजाक उड़ाया गया, पर उनकी इस प्रयास ने गहलोर के लोगों का जीवन आसान बना दिया था| हालांकि सुरक्षित पहाड़ को काटना, भारतीय वन जीवन सुरक्षा अध्ययन के अनुसार यह एक दंडनीय कार्य है और इसी के साथ दशरथ मांझी ने उस पहाड़ के पत्थरों को भी बेचा था|
जिसके कारण उन्हें एक बार जेल भी जाना पड़ा| दशरथ मांझी के इस बड़े फैसले को सुनने के बाद गांव वाले ने इन पर तने कसे| लेकिन उनमें से कुछ लोगों ने उन्हें खाना देकर और औजार खरीदने में उनकी बहुत मदद की| उन्होंने अपने पत्नी फुलगनी देवी के प्रेम में एक जिंदा पहाड़ को काटकर रास्ता बना दिया था|
सरकार की तरफ से सम्मान
दशरथ मांझी ने 22 साल तक लगातार मेहनत की, 1982 मैं उन्होंने आखिरकार पहाड़ को काटकर 350 फीट (120 मीटर) लम्बा, 30 फीट चौड़ा और 25 फीट ऊंचा रास्ता बना दिया| इस इस सड़क के बनने से गांव वाले को शहर जाने में पहले के मुकाबले बहुत कम समय लगता था| उन्होंने अकेले ही पहाड़ को काटकर रास्ता बना दिया था जिससे उन्हें माउंटेन मैन के भी नाम से जाना जाता था|
उनकी इस बड़ी उपलब्धि के लिए बिहार सरकार ने सामाजिक सेवा के क्षेत्र में उनके नाम का टेम्पल बनवाया | बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दशरथ मांझी के नाम पर गेहलौर में 5 किलोमीटर लंबी पक्की सड़क बनवाई, इसी के साथ ही उनके नाम का एक सरकारी अस्पताल बनवायी|
दोस्तों दरअसल दशरथ मांझी को उनके जीवन में कभी भी वह पहचान नहीं मिली जिनमके वह असल में हकदार थे, 2007 में उनकी मृत्यु के बाद उनके काम की सहारण की गई| भारत सरकार ने उनके काम को सम्मान दिया और 2015 में उनके जीवन शैली पर एक फिल्म भी बनी जिसका नाम द माउंटेन मैन रखा गया था|
निष्कर्ष
दशरथ मांझी की जीवन की कहानी सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि प्रेम और अथक परिश्रम की एक अविश्वसनीय गाथा मानी जाती है| ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने अपने पत्नी के खातिर अकेले ही एक छेनी और हथौड़े से विशाल पहाड़ को काटकर रास्ता बना दिया| उस पहाड़ को काट कर रास्ता बनाने में उन्हें पुरे 22 साल लग गए| दशरथ मांझी ने न केवल पहाड़ को काटकर सड़क बनाया था, बल्कि समाज को उन्होंने अपने कर्मों से प्रेम शक्ति की ताकत बताई थी| उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि एक साधारण व्यक्ति भी असाधारण कार्यों को कर सकता है| आज भी वह गेहलौर गाँव की सड़क दशरथ मांझी की अमर गाथा सुनाती है| इसी कारण प्रेमानंद महाराज ने सच्चे प्रेम (True Love) की निशानी के लिए दशरथ मांझी की विशाल दी थी|
समाप्त!
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