बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर सोशल मीडिया का प्रभाव?


बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर सोशल मीडिया का प्रभाव? 

भाइयो आज के डिजिटल जमाने में, सोशल मीडिया का उपयोग बड़े से लेकर छोटे-छोटे बच्चे भी कर रहे हैं, और इतना ही नहीं सोशल मीडिया बच्चों के जीवन का एक अहम हिस्सा बन चुका है| एक तरफ यह बच्चों को दुनिया से जुड़ने और उसे कुछ नया सीखने का मौका देती है|तो वही इसका अधिक इस्तेमाल बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डाल रहा है| इस लेख में हम बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर सोशल मीडिया का सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे| 

डिजिटल दुनिया का जाल?

साथियों एक समय था, जब बच्चे शाम को खेलने के लिए मैदान में जाया करते थे, और खाली समय पर कहानी सुनते-पढ़ते या दोस्तों के साथ गपशप करते थे| लेकिन आज वह जगह स्मार्टफोन ले चुकी है| व्हाट्सप्प, इंस्टाग्राम, ट्विटर, स्नैपचैट, फेसबुक और टिकटोक जैसे प्लेटफार्म अभी के बच्चों की दिनचर्या बन चुकी है| जिस पर दिनभर बच्चे अपना समय बर्बाद करते हैं| 

वे यहां घंटो समय बिताते हैं, दूसरों की जिंदगी देखते हैं, अपनी तस्वीर और वीडियो को साझा करते हैं, इसके अलावा लाइक व कमेंट के पीछे भागते हैं| साथियों यह बदलाव केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं रहती है, इसका पूरा नकारात्मक प्रभाव आपके बच्चों के मन और मस्तिष्क पर बढ़ रहा है| इन प्लेटफार्म को ऐसे डिजाइन किया जाता है, जिस पर आप अपना घंटो समय बिता सके| आपने यह नोटिस किया होगा के इन apps या एप्लीकेशन को इस्तेमाल करते हुए आपको समय का बिलकुल भी अंदाजा नहीं होता||

सोशल मीडिया का नकारात्मक प्रभाव?

FOMO ( फेयर ऑफ़ मिसिंग आउट ): साथियों जब बच्चे अपने दोस्तों को सोशल मीडिया पर बाहर घूमते या मस्ती करते हुए वीडियो को देखते हैं, तूने यह डर सताने लगता है कि वह अपने जीवन में कुछ खास हो रहे हैं| और उनके दोस्त उनसे ज्यादा अपने लाइफ को इंजॉय कर पा रहे हैं| यह FOMO    ( फेयर आफ मिसिंग आउट ) की भावना उन्हें बेचैन कर सकती है और उनमे चिंता बढ़ा सकती है| 

वास्तविक बातचीत का अनुभव: ऑनलाइन बातचीत आमने-सामने बातचीत की जगह ले सकती है| इससे बच्चे वास्तविक दुनिया से अपने अच्छे रिश्तों से दूर हो जाते हैं| भले ही उनके हजारों लाखों ऑनलाइन दोस्त हो, लेकिन फिर भी वह अकेला और अलग महसूस कर सकते हैं | जिसे बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है| 

नींद की कमी: सोने से ठीक कुछ देर पहले सोशल मीडिया का उपयोग करना बंद कर देना चाहिए, इससे आपकी नींद पूरी हो सकेगी| अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो सोशल मीडिया का अधिक उपयोग करना आपकी नींद के पैटर्न को बाधित कर सकता है, जिससे आपको थकान और चिड़चिड़ापन जैसा महसूस होने लगेगा,  जिससे आपको रात मे सोते वक्त बार-बार उठ जाओगे| 

ध्यान की कमी और पढ़ाई असर: लगातार आपके फोन में आने वाले नोटिफिकेशन बच्चों का ध्यान भड़काने का काम करती है| जिससे उनका ध्यान केंद्रित करना मुश्किल हो जाता है, इसका सबसे बड़ा प्रभाव बच्चों के पढ़ाई पर होता है|

आत्मसम्मान और शारीरिक छवि: दूसरों की अच्छी जीवन और उसके दिखावे के संपर्क में आने से बच्चों पर शारीरिक छवि को लेकर नकारात्मक भावनाएं उत्पन्न होती है, और साथ ही साथ बच्चों में आत्म सम्मान की कमी हो सकती है|


सोशल मीडिया का सकारात्मक प्रभाव?

साथियों कुछ मामलों में सोशल मीडिया ऑनलाइन समुदाय से जुड़ने सार्थक संबंध बनाने और भावत्मक सहयोग प्राप्त करने हमारी बड़ी मदद करता है| खासकर उन बच्चों के लिए जिनके अपने वास्तविक जीवन में अच्छे संबंध नहीं है| इसके अलावा आप सोशल मीडिया का उपयोग करके अपने घर गृहस्थी चलाने के काम भी ला सकते हैं, अभी के समय में सोशल मीडिया एक बहुत पावरफुल उपयोगी उपकरण बन चुकी है जिससे आप घर बैठे बैठे पैसा कमा सकते हैं| 

 सामाजिक जुड़ाव : बहुत से बच्चे सामाजिक जुड़ाव बनाते हैं, बच्चे ऑनलाइन समुदायों में शामिल होते है, और अपने समान विचारधारा वाले लोगों से जुड़कर अपनापन और जुड़ाव की भावना को महसूस कर पाते हैं | 

आत्म अभिव्यक्ती: सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जिस पर आप अपना एक नाम बना सकते हो, दिल्ली से दुनिया के हर लोग आपको जान सकेंगे| अगर आप सोशल मीडिया का उपयोग सही मायने में करते हैं तो उसे आप एक अच्छा नाम कमा सकते हैं| 

पैसा बनाने का सोर्स : सोशल मीडिया एक ऐसा मंच है जिस पर आप अपने आपको साबित करके किसी भी कंपनी के साथ ऑनलाइन काम कर सकते हैं, साथी अच्छा पैसा बना सकते हैं| अभी के समय में सोशल मीडिया का उपयोग करके लोग लाखों कमा रहे हैं| 


समाज और माता-पिता की जिम्मेदारी?

माता-पिता और समाज के लोगों को अपने बच्चों को सोशल मीडिया के नकारात्मक प्रभाव से बचाने के लिए कुछ खास ठोस कदम उठाने चाहिए, जैसे- 

बच्चों का सही उम्र का इंतजार: आज के समय में कोई बच्चा रोता है तो उसके माता-पिता उसे चुप करने के बजाय स्मार्टफोन दे देते हैं, जिससे बच्चों के मन में स्मार्टफोन के प्रति लगाव बढ़ जाता है, और वह स्मार्टफोन को अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मान लेते हैं| जिससे उन्हें फोन न देने पर उनके मानसिक स्वास्थ्य बुरारा प्रभाव पड़ सकता है| माता- पिता को चाहिए के बच्चे को स्मार्टफोन या सोशल मीडिया अकाउंट देने से पहले उनके सही उम्र का इंतजार करें| 

आमने-सामने बातचीत: बच्चों को अपने दोस्तों के साथ बाहर खेलने, नए शौक अपनाने और अपने परिवार के साथ समय बिताने के लिए प्रोत्साहित करें| ताकि वह आप अपने वास्तविक रिश्तो की अहमियत को समझ सके| 

खुली बातचीत: अपने बच्चों से सोशल मीडिया के खतरों साइबर पुलिंग और गलत जानकारी के बारे मेंखुलकर बात करें| उन्हें बताएं कि अगर आप किसी समस्या में फंसे तो हमें बता सकते हैं, जिससे हम आपकी मदद कर पाएं| 

स्क्रीन टाइम सीमित करना : अगर आप अपने बच्चों की भलाई चाहते हैं तो उनके स्क्रीन टाइपिंग को सीमित करे, अचानक से बच्चों के स्क्रीन टाइम को कम करने से उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है, इसलिए उन्हें समझाएं कि यह उनके भलाई के लिए है|

डिजिटल साक्षरता: साथियों ऑनलाइन में आपको अच्छी और बुरी चीज़ दोनों उपलब्ध होती है, इसलिए अपने बच्चों को डिजिटल साक्षरता ज्ञान दे| ताकि वह समझ सके की ऑनलाइन में क्या सही है और क्या गलत, इसके अलावा उन्हें समझाएं कि ऑनलाइन में सब कुछ सच नहीं होता|



निष्कर्ष- साथियों सोशल मीडिया एक दो धारी तलवार है, यह बच्चों को दुनिया से जोड़ सकता है, लेकिन अगर इसका इस्तेमाल लापरवाही बेपरवाही के साथ किया जाए| तो यह बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर समस्या बन सकता है| बच्चों को डिजिटल दुनिया से पूरी तरह दूर रखना संभव नही है, लेकिन उन्हें समझदारी से इसका इस्तेमाल करना सिखाया जा सकता है|

आपको अपने बच्चों को यह समझना जरूरी है कि लाइक्स और कमेंट से ज्यादा जरूरी आपका असली जीवन और उसकी खुशियां है | तभी वह मानसिक रूप से स्वस्थ रह सकते हैं और इन सोशल मीडिया, डिजिटल दुनिया में रहकर भी वे अपना स्वस्थ बचपन की सकते हैं| 

समाप्त!






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